दुनियाभर के मुस्लिमों के बीच अरबाईन तीर्थयात्रा काफी अहमियत रखती है. इस तीर्थयात्रा को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक जमावड़ा भी कहा जाता है. हर साल अरबाईन तीर्थयात्रा में हज यात्रा से भी ज्‍यादा मुसलमान हिस्‍सा लेते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, साल 2017 में अरबाईन तीर्थयात्रा या कर्बला वॉक या कर्बला तीर्थयात्रा में 2.5 करोड़ लोगों ने हिस्‍सा लिया था. ये तीर्थयात्रा आशूरा के बाद 40 दिनों की शोक की अवधि के आखिर में इराक के कर्बला में आयोजित किया जाता है.
कर्बला की पैदल यात्रा के रास्‍तों पर स्वयंसेवक तीर्थयात्रियों के लिए भोजन,आवास समेत कई दूसरी सेवाएं मुफ्त उपलब्‍ध कराते हैं. कुछ तीर्थयात्री करीब 500 किलोमीटर दूर इराक के बसरा या करीब 2,600 किलोमीटर दूर ईरान के मशहद और दूसरे शहरों से सड़क के रास्‍ते यात्रा पूरी करते हैं. इस पैदल यात्रा को शिया विश्‍वास और एकजुटता का प्रदर्शन माना जाता है.
तीर्थयात्रा के 20 दिनों के लिए पूरे इराक में शिया शहर, कस्बे और गांव खाली हो जाते हैं. दरअसल, इस दौरान शिया मुस्लिम संगठित तरीके से तीर्थयात्रा पर निकलते हैं. साल 2014 तक दुनिया के 40 देशों के 1.9 करोड़ से ज्‍यादा लोगों ने इस पैदल तीर्थयात्रा में भाग लिया, जिससे यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धार्मिक जमावड़ा बन गया. इराक की सरकारी मीडिया के अनुसार, 2015 तक यह आंकड़ा 2.2 करोड़ तीर्थयात्रियों तक पहुंच गया.
अरबाईन वॉक या कर्बला तीर्थयात्रा करना मुसलमानों के लिए अनिवार्य नहीं है. वहीं, इस्‍लाम के मुताबिक, हर मुस्लिम को अपने जीवन में कम से कम एक बार हज यात्रा करना अनिवार्य माना जाता है. कर्बला तीर्थयात्रा सिर्फ उन मुसलमानों के लिए अनिवार्य है, जो इसका खर्चा उठा सकते हैं. वहीं, हज के सख्त नियम और सीमित स्थान के कारण खर्चा ज्‍यादा है. ऐसे में अरबाईन वॉक उन मुसलमानों के लिए विकल्प बन गई है, जो हज का खर्च नहीं उठा सकते हैं. इसीलिए अरबाईन वॉक में हज से ज्‍यादा मुस्लिम तीर्थयात्री पहुंचने लगे हैं.

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